सुबह को छूती पहली किरण हो तुम,
हँसते लबो में छुपी गम हो तुम,
ख्वाहिशों को समेट नज़रों में ,
मंजिल कि ओर बढती कदम हो तुम.
ये फूलों कि राहें काँटों में खो गए.
तस्वीर तुम्हारी इन्ही वादियों में छोड़ गए.
अब आँचल को मुखरे पर टिका दो,
मेरे जीवन के पायल कि छन - छन हो तुम,,,,,,
देवेश झा