सफ़ेद
सुबकता आसमां प्यासी धरती थी,
एक चाँद मुझपे भी मरती थी..
यूँही रात गुज़र जाती,
पर जाने से वो डरती थी?
मैंने पूछा क्या हुआ?
पता चला, वो किसी और का इंतज़ार करती थी..
हाथों फूल लिए बैठी रहती थी,
चुप चुप कभी कभी रोती थी...
उस दिन फलक से बारिश होती थी,
मैंने बूंदों को छुआ,
पता चला, मेरी ही आँसू उसके आँखों से गिरती थी..
हवाओं ने रुख बदली,
फिजाओं ने रुत बदली..
पर वो तो वैसे ही बैठी थी..
मैंने जाके देखा,
पिछले ही सावन, वो इंतज़ार करते करते मर चुकी थी...
लाश पे उसकी एक चुनरी थी,
दुनिया उसे सतरंगी कहती थी..
कोई जाकर ना हटाये उस चुनरी को,
वो तो कफ़न बनी मेघ है,
क्यूँकि सात रंग मिल ही तो सफ़ेद है!!!!
देवेश झा
Youthon
Sunday, November 28, 2010
Galat
मैं कुछ गलत करती हूँ,
पर गलती मेरी कहाँ ?
शर्म से सर ना झुकाऊं,
पर मैं बेशर्म कहाँ ?
हर दिन एक डोर काटूँ,
पर इसका अंत कहाँ ?
पैसे लेती तुझे खुश कर,
पर मैं खुश होती कहाँ ?
सजा भी भुगत लूं,
पर मेरी अपराध कहाँ ?
पूजा तेरी कुछ पल करूँ,
पर तू मेरा भगवान् कहाँ ?
रो भी ना सकूँ,
इन आँखों में आँसू कहाँ ?
पेट का सवाल है बाबू,
नोच निर्वस्त्र खड़ी मैं, जहाँ तहाँ..?
देवेश झा
पर गलती मेरी कहाँ ?
शर्म से सर ना झुकाऊं,
पर मैं बेशर्म कहाँ ?
हर दिन एक डोर काटूँ,
पर इसका अंत कहाँ ?
पैसे लेती तुझे खुश कर,
पर मैं खुश होती कहाँ ?
सजा भी भुगत लूं,
पर मेरी अपराध कहाँ ?
पूजा तेरी कुछ पल करूँ,
पर तू मेरा भगवान् कहाँ ?
रो भी ना सकूँ,
इन आँखों में आँसू कहाँ ?
पेट का सवाल है बाबू,
नोच निर्वस्त्र खड़ी मैं, जहाँ तहाँ..?
देवेश झा
Mere Kuchh Lafzz!!!
मेरे कुछ लफ्ज़ फंसे है तेरे होठों में,
चुपके से इन्हें मेरे लबों पर रख दो...
आंसू बन जाये ना बर्फ पलकों में,
चुप रे पागल हवा क्यूँ सर्दी करता है,
तुम कुछ बोलकर ज़रा चुप हो जाओ..
ये और रात का भींगा ओस बस मनमर्जी करता है,
छूकर इन्हें तुम मुझसे लिपट फिर छुप जाओ..
बुझता हुआ चाँद क्या शर्माएगा,
ढीठ बड़ा रात अपने संग बिताएगा..
तुम हंसकर इसे इशारा कर दो,
कमबख्त! धरती पर गिर जायेगा..
देवेश झा
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