Youthon

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Sunday, November 28, 2010

सफ़ेद
सुबकता आसमां प्यासी धरती थी,
एक चाँद मुझपे भी मरती थी..
यूँही रात गुज़र जाती,
पर जाने से वो डरती थी?
मैंने पूछा क्या हुआ?
पता चला, वो किसी और का इंतज़ार करती थी..
हाथों फूल लिए बैठी रहती थी,
चुप चुप कभी कभी रोती थी...
उस दिन फलक से बारिश होती थी,
मैंने बूंदों को छुआ,
पता चला, मेरी ही आँसू उसके आँखों से गिरती थी..
हवाओं ने रुख बदली,
फिजाओं ने रुत बदली..
पर वो तो वैसे ही बैठी थी..
मैंने जाके देखा,
पिछले ही सावन, वो इंतज़ार करते करते मर चुकी थी...
लाश पे उसकी एक चुनरी थी,
दुनिया उसे सतरंगी कहती थी..
कोई जाकर ना हटाये उस चुनरी को,
वो तो कफ़न बनी मेघ है,
क्यूँकि सात रंग मिल ही तो सफ़ेद है!!!!
देवेश झा

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