Youthon

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Sunday, November 28, 2010

Galat

मैं कुछ गलत करती हूँ,
पर गलती मेरी कहाँ ?
शर्म से सर ना झुकाऊं,
पर मैं बेशर्म कहाँ ?
हर दिन एक डोर काटूँ,
पर इसका अंत कहाँ ?
पैसे लेती तुझे खुश कर,
पर मैं खुश होती कहाँ ?
सजा भी भुगत लूं,
पर मेरी अपराध कहाँ ?
पूजा तेरी कुछ पल करूँ,
पर तू मेरा भगवान् कहाँ ?
रो भी ना सकूँ,
इन आँखों में आँसू कहाँ ?
पेट का सवाल है बाबू,
नोच निर्वस्त्र खड़ी मैं, जहाँ तहाँ..?
देवेश झा

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