Youthon

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Tuesday, September 27, 2011

Sisakta lau..

शब्दों के सितारों में तलाशती दिया तुम मेरे ज़िन्दगी की,
जिसके सिसकते लौ से हथेलियों को जलाता मैं,
खामोश हूँ, लबों को तुम्हारे शब्दों पर टिका देने के बाद, 
आज आहिस्ता देखा जुल्फों के सायों को तुम्हारा,
मेरे पन्नों पे गिरा था एक लट तुम्हारा, अठखेलियाँ  करती आँखों के अंगराई से छुपकर झुकी तुम उन किताबों के आईने पे जिसपे गिरा था तुम्हारे जुल्फों का एक साया, उस बाल के टुकरे को दबा के गुलाब के पंखुरियों के नीचे, मैं रात के दिवार पे आंसुओं की पिघलती तस्वीर बनता की इससे पहले किरण आई  चांदनी की, तुम ही तो थी वो किरण, एक बेबस शायर के शेर में बसती रूह बनके...   ( देवेश झा)