Youthon

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Tuesday, October 4, 2011

दो बजे...

तफतीस करते हुए रात के,
दो बजे,
छत के रुखरे फर्श पे 
लेटा मैं,
छनक के गिरा जो बूँद,
तुम्हारे तकिये पे,
सुना था मैं.
शायद झूठा ख्वाब हो,
सोचूं मैं इससे पहले,
दर्द हो पड़ा सीने मैं.
वाकई में ज़ख्म था..
दो बजे, 
धूप के छिछलते,
भाप से याद आई,
तुम्हारे दाल की धीमीं नमक,
अब तो दो बूँद रो,
नमक की कमी,
दो बजे, 
पूरी होती होगी,
कभी लपेट बादल के टुकरे को,
सुखाती सर्फ़ से धोये कपडे,
इसी छत पर,
जिसपे लेटा मैं 
दो बजे,
रात में,
की महक आती थी,
वो गर्त में पड़ा,
कुछ पंखुरिया,
बरसात के बाद से ही,
मुझसे कहने को उग आई,
बनके दो बड़े पौधे, 
अब जिसकी आहट आती है 
दो बजे,
स्कूल के बसते से उनके.
निकालता मैं उनके माँ के 
नाम एक चिट्ठी,
जिसे पोस्ट करना 
हर दिन मैं भूल जाता,
क्यूंकि पता ही नहीं 
उस डाकखाने का 
जहां से खुदा ख़त उठाता,
और दो बजने से पहले मुझे मिल जाती,
दूसरी ख़त की, 
क्यूँ उसने दो बजे,
एक सुनसान रस्ते पर दिया
कुचलने उसे जो दो पौधों की
माँ थी,
और एक पेड़ की नम पानी,
जो बहता रहता इसी तरह 
हर दिन दो बजे
और हर रात दो बजे....
देवेश झा 

Tuesday, September 27, 2011

Sisakta lau..

शब्दों के सितारों में तलाशती दिया तुम मेरे ज़िन्दगी की,
जिसके सिसकते लौ से हथेलियों को जलाता मैं,
खामोश हूँ, लबों को तुम्हारे शब्दों पर टिका देने के बाद, 
आज आहिस्ता देखा जुल्फों के सायों को तुम्हारा,
मेरे पन्नों पे गिरा था एक लट तुम्हारा, अठखेलियाँ  करती आँखों के अंगराई से छुपकर झुकी तुम उन किताबों के आईने पे जिसपे गिरा था तुम्हारे जुल्फों का एक साया, उस बाल के टुकरे को दबा के गुलाब के पंखुरियों के नीचे, मैं रात के दिवार पे आंसुओं की पिघलती तस्वीर बनता की इससे पहले किरण आई  चांदनी की, तुम ही तो थी वो किरण, एक बेबस शायर के शेर में बसती रूह बनके...   ( देवेश झा)

Saturday, August 6, 2011

Morning dew has been my tears- a maithili lyrics

                                             भोरक शीत

गायिका-  भोरक शीत बनल अछि नोर हमर,
                आबि पिया कने पीबि लिअ....

               सिमसल ठोर, आँखिक कोर लगाबू,
               सांसक शोर, नाक सटोने सुनाबू....
               केशक लट उतारि, रस स्नेहक छिनी लिअ...
               भोरक शीत बनल अछि नोर हमर,
              आबि पिया कने पीबि लिअ....


गायक- शोणित संग फूटल अछि ठोर हमर,
            आबि सजनी कोना पीबि लिअ...

         कखन छल सांझ कखन भोर भेल,
        इ धरती कखन पुलकित पोर पोर भेल,
         जुनि थिक थाह समयक,
       इ जिनगी मूनि आइंख जिबी लिअ...
       शोणित संग फूटल अछि ठोर हमर,
       आबि सजनी कोना पीबि लिअ... 

गायिका- बिन बरखा के तन भिजा- भिजा,
             भिजल चुनरी के हम उड़ा- उड़ा,
             कहलौं मिलन के विरह हमर कीनि लिअ..
             भोरक शीत बनल अछि नोर हमर,
                आबि पिया कने पीबि लिअ....

गायक-  शोणित संग फूटल अछि ठोर हमर,
           आबि सजनी कोना पीबि लिअ... 
गायिका- जेना चुम्बन लेत अछि धरती आसमां के,
गायक- जेना छू लैत अछि आइग धुंआ के,
गायक- गायिका- एक दोसर के मों में आबि घूमि लिअ..
गायिका- भोरक शीत....
गायक- शोणित संग.....
  
देवेश झा
copyright@ Devesh Jha
All right reserved.
                       
           

Wednesday, August 3, 2011

a heartache maithili lyrics by Devesh Jha

बेटी बेचैथ बेटी के  (maithili lyrics)

आन्हर पूरबा करेज सिसोह्लक, 
सुईया रखने छल झोंका में,
लगा नून जख्म में, चुभोलक !
      
                              दहकैत कंठ किये लहू के प्यासल,
                              जरैत मुर्दा किये उठी के नाचल?
                               भूखल बगरा प्राण गमौता,
                              टपकैत मौस आई गिद्ध के,
                              बेटी बेचैथ बेटी के !... -२ 

मंदिर में देवता हाथ दूनू जोरलक,
कलियुग पईस गंगा में मुँह धोलक!
आन्हर पूरबा करेज सिसोह्लक, 
सुईया रखने छल झोंका में,
लगा नून जख्म में, चुभोलक !

                                  ओ चाँद गगन सँ उजड़ी गेल,
                                  स्त्रिक कोखे पाप सँ भरी गेल,
                                  पुरुष सँ पुरुष ब्याह रचौता,
                                  कहू विधाता इ कुन बिद्ध छै!
                                  बेटी बेचैथ बेटी के!...-२

साँप मदिरा में फन गोतलक,
मनुखक चाम सँ बजैत ढोलक,
आन्हर पूरबा करेज सिसोह्लक, 
सुईया रखने छल झोंका में,
लगा नून जख्म में, चुभोलक !

                                 
                              नंगा नाच नचैत ऐछ रुपैया,
                           साड़ी नोचलक जखन अपने भैया,
                            बेटा पकरैत मायक झोंटा,
                        बौक भेल बापक कून जिद छै.
                       बेटी बेचैथ बेटी के!...-२
 देवेश झा
All right reserved.
Copyright@ Devesh Jha
Author of Dwelling Dew (english fiction)


Thursday, June 23, 2011

Shikhar par jaana...

बुझी दीपशिखा
शिखर पर जाना,
तुम !
चाँद की आभा,
छूना.

सतह से गहराई की सीमा,
नापना हो अगर तो,
मेरे आँखों में कण डाल,
देना.

लाबब भरा नैन समंदर,
तलछटी को छूए कण.
इससे पहले कण,
गल जाएगी.

शिखर से उतरो,
चाँद से पूछो,
दाग कहाँ है?

कला बन बैठा बूँद जो नैनों में,
कहीं वो तो नहीं.
शिखर पर जाना तुम,
चाँद की आभा छूना.

अवरक्त भरा मेघ,
क्षितिज पर इठलाये,
कह दो इससे सुन्दर, रक्तिम हैं मेरे नैन,
कल ही तो रक्त गिरा था,
आंसू के बदले.

अरण्य में दीपशिखा,
और धुल सनी जटा,
देखे हैं मेरे नैन.
सूर्य सना बर्फ में,
जलती चाँद कोठरी में,
कैद ये बिम्ब सारे,
नेत्र पटल पर.

शिखर पर क्या लहर है, मुझे बतलाओ.
गंध है वहाँ भी कफ़न के सूत का?
या, सिन्दूर चिपकी जो मांग में,
जला पर बना ना राख,
के कुछ अवशेष हैं?

नहीं.

फिर शिखर पर "तुम"
नहीं हो (मेरा अतीत),
या कोई मूर्तिमान है.
भूलकर,
जली प्रेमिका को,
और बुझी दीपशिखा को.
देवेश झा 

Tuesday, March 22, 2011

                                              शब्दों का सूरज

मेरे जाने के बाद भी ek  सुबह होगी,
raat  के गर्त से उबने की वज़ह होगी!

बूंदों में सैलाब ढूंढ़कर ओस गिरेगा,
और गुलाब तब भी मदहोश रहेगा ! 

शब्दों का काला sa  सूरज  उगेगा,
सफ़ेद बादल के फटे पन्नो पर.
अमर होकर मरती मेरी panktyiaan,
ज़हर उगलती इसकी कुछ shaktiyaan,
सिसक सिसक कर अचरज करेगा,
मुरझाये ओस से लिपटे सुमनों पर!

दिन कर gin कर अणु चुन चुन कर,
सब मरेंगे  प्रलय  से पहले!
गुदा का मांस नोच माँ पेट भरेगी,
दुग्ध विहीन स्तन अपना कैसे नोचेगी!
बधिर के कर्ण फटेंगे सुन सुन कर,
तेरी जीवन मूक रे बहरे!
मरी मेरी छंद जो पहले कहती थी,
प्रेयसी के होठ रस पान का gaan!
मेरी प्रेम की भाषा जिसमें बसती थी,
वो साहित्य त्यागेया अपना प्राण!
तब भूख से लड़ती  जिरह करेगी,
और मुर्दों में पा बिलख पड़ेगी!
अश्रु नीर से भरे संसार में न सतह होगी,
मेरे जाने के बाद भी एक सुबह होगी,
raat के गर्त से उबने की वज़ह होगी!
 दुग्ध मेखला में गंगा की परछाई नहाएगी,
बरसों से पाप पी पी कर तब उसे उबकी आएगी!
पैदा होता हर सितारा चाँद से छोटा होगा,
क्यूंकि चाँद पर बैठा इंसान सोचता होगा,
खाली धरती पर तो राख बचा है,
अब इस सितारों में क्या ख़ाक बचा है,
उसे खुदको खुद से करनी न आती फतह होगी,
मेरे जाने के बाद भी ek सुबह होगी,
raat तब भला क्या होगा, जब दिन ही न होगा,,,,,
देवेश झा.......











Wednesday, February 9, 2011

रब मेरा

                                               रब मेरा...
                                                  

मन  में  तुम  हो  या  रब  मेरा ,
नैनो  के  काजल  में  गज़ब  ज़रा ,
थी  तुम  मुस्काती  या  चाँद  था ,
या  मेरा  पुराना  अरमान  था ..
छलक  जो  आई  तेरे  लब  से  लब  मेरा ,
मन  में  तुम  हो  या  रब  मेरा ,
मूंदो  ना  पलकों  को,  मैं  दब  जाता  हूँ ,
तेरे  अक्स  को  छूने  जब  जाता  हूँ ,
गिराकर  जुल्फों  को  मेरे  अश्क आज  पीने   दो ,
अपने  रब  को  आज  मेरे  सीने  में  जीने  दो ..
रो  पड़े  धड़कन  में  रब  जब  तेरा ,
तुम  जान  जाओगी  तुम्हे  चाहने  की सबब  मेरा …
मन  में  तुम  हो  या  रब  मेरा ..
देवेश  झा