रब मेरा...
मन में तुम हो या रब मेरा ,
नैनो के काजल में गज़ब ज़रा ,
थी तुम मुस्काती या चाँद था ,
या मेरा पुराना अरमान था ..
छलक जो आई तेरे लब से लब मेरा ,
मन में तुम हो या रब मेरा ,
मूंदो ना पलकों को, मैं दब जाता हूँ ,
तेरे अक्स को छूने जब जाता हूँ ,
गिराकर जुल्फों को मेरे अश्क आज पीने दो ,
अपने रब को आज मेरे सीने में जीने दो ..
रो पड़े धड़कन में रब जब तेरा ,
तुम जान जाओगी तुम्हे चाहने की सबब मेरा …
मन में तुम हो या रब मेरा ..
देवेश झा
बहुत बढिया मासूम सी कविता
ReplyDeleteशुभकामनायें
देवेश झा
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता . बधाई
मूंदो ना पलकों को, मैं दब जाता हूँ ,
ReplyDeleteतेरे अक्स को छूने जब जाता हूँ ,
मन में तुम हो या रब मेरा ..
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अंतरात्मा का ये द्वन्द अच्छा लगा..मुझे लगता है की इस "तुम' को आप ने "रब'' बना लिए है..
तो हुआ न दिल में "रब" भी और "तुम" भी...
बधाइयाँ..