Youthon

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Monday, November 29, 2010

Gangajal jaisi...

 


लबों की शादी...

मेरे आँखों में अपने आँसू गिरा दे,
बारिश की बूंदे जैसे गंगाजल छूती.
थकी पलकें मेरे पलकों पे लिटा दे,
उजली  चाँद जैसे नीली आसमां में सोती..
ज़रा ज़रा मुस्कुरा की गगन हाथों में आ जाए,
बाँध मुट्ठी फिर सितारों से तेरी मांग भरा जाए.. 
घर का ठिकाना मैं ओस से पूछ तो लूं,
उसने कहा तूने नहीं आज गुल चूमा है..
ठहरा ले उसे होठों पर, के मुझे उससे डर है,
बन जाए ना ओस आँसू जो गिरता इधर उधर है..
काश के मैं तेरा होठ बन जाऊं,
फिर फूलों से ओस चुन लाऊं,
कभी तो तुम अपने लब को लबों से मिलाओगी,
अपने ऊपर के लब को पिया बना,
खुद भी नीचे की लब बन जाओगी..
दबी साँसों की बारात होगी,
एक लब दूल्हा मैं एक लब दुल्हन तू,
दो लबों के लिए तो हर शब्द मिलन की रात होगी..
अब दो लबों में बिना कुछ कहे भी बहुत बात होगी..
देवेश झा

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