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Tuesday, March 22, 2011

                                              शब्दों का सूरज

मेरे जाने के बाद भी ek  सुबह होगी,
raat  के गर्त से उबने की वज़ह होगी!

बूंदों में सैलाब ढूंढ़कर ओस गिरेगा,
और गुलाब तब भी मदहोश रहेगा ! 

शब्दों का काला sa  सूरज  उगेगा,
सफ़ेद बादल के फटे पन्नो पर.
अमर होकर मरती मेरी panktyiaan,
ज़हर उगलती इसकी कुछ shaktiyaan,
सिसक सिसक कर अचरज करेगा,
मुरझाये ओस से लिपटे सुमनों पर!

दिन कर gin कर अणु चुन चुन कर,
सब मरेंगे  प्रलय  से पहले!
गुदा का मांस नोच माँ पेट भरेगी,
दुग्ध विहीन स्तन अपना कैसे नोचेगी!
बधिर के कर्ण फटेंगे सुन सुन कर,
तेरी जीवन मूक रे बहरे!
मरी मेरी छंद जो पहले कहती थी,
प्रेयसी के होठ रस पान का gaan!
मेरी प्रेम की भाषा जिसमें बसती थी,
वो साहित्य त्यागेया अपना प्राण!
तब भूख से लड़ती  जिरह करेगी,
और मुर्दों में पा बिलख पड़ेगी!
अश्रु नीर से भरे संसार में न सतह होगी,
मेरे जाने के बाद भी एक सुबह होगी,
raat के गर्त से उबने की वज़ह होगी!
 दुग्ध मेखला में गंगा की परछाई नहाएगी,
बरसों से पाप पी पी कर तब उसे उबकी आएगी!
पैदा होता हर सितारा चाँद से छोटा होगा,
क्यूंकि चाँद पर बैठा इंसान सोचता होगा,
खाली धरती पर तो राख बचा है,
अब इस सितारों में क्या ख़ाक बचा है,
उसे खुदको खुद से करनी न आती फतह होगी,
मेरे जाने के बाद भी ek सुबह होगी,
raat तब भला क्या होगा, जब दिन ही न होगा,,,,,
देवेश झा.......