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Saturday, December 25, 2010

रक्त है कुछ थका थका सा, the heart broker poem for the country cowards,,, devesh jha

रक्त है कुछ थका थका सा,
फिर भी मृत्यु कि उमंग है,
गलबहियां करती उद्दीप्त सितारों से,
टूटकर चूर होने कि जंग है..

शहद बना है घाव दीमक का,
लहू चाट कर साम्राज्य सो रहा.
निवालें में ज़हर रखकर माँ ने रोटी दी है,
कहती नमक अभी भी गाँधी ढो रहा..

राज्य है या आग का चिंगारी,
थोड़ी सी प्याज के लिए,
गुर्ज़रों कि आवाज़ के लिए,
भींगती बेचारी भारत माँ थर थर,
ख़ाक लिया आज़ादी जब मर रही है नारी...

चुप हो जा, सुन्न कि संसद में शोरगुल है,
अभी मुंबई में था चार,
अब्ब गुजरात भी बीमार,
ये आतंक है या बिमारी...
कोढ़ खुजाने से मिटती नहीं,
बढ़ जाती है लाचारी,
मेरी माँ को दीमक चाट रहा है,
फिर तुक्रों में बाँट रहा है,
छि: मैं बेटा हूँ, जो अभी बी टीवी के खबरों आगे बस लेता हूँ...

दे  धुन कि तरंग से तृप्त हो गगन,
फांसी दो अपने हाथों से जो जेल में बंद..
कंचन कि मंजन से पहले, राख मल दो मुखरे पे,
गाँधी बाबा को सोने दो अब के मामूली झगडे पे...

हाथ तलवार ना लेना ना ही हिन्दू या मुस्लिम कहना,
अगर पाप नज़र आये अपने में, सबसे पहले अपनी गर्दन उतार देना..

मर जाओ रे मर जाओ, मेरे दोस्तों अब तो अपनी छोटी दुनिया से निकल कर आओ..
मारेगी ना तेरी मुहब्बत, अगर मर जाए देश तो क्या उल्फत...
 देवेश झा 

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