Wonder happens after love...
तुम मुझे यूँ सपनो में क्यूँ दिखती हो,
जब भी रात ठहर कर रोता है,
तुम मेरे पलकों को क्यूँ छूती हो?
सजा कहूँगा तो वफ़ा क्या करूँगा,
बहने दो होठों से लहू मेरी,
एक नमकीन सी खुश्बू तो होगी,
सांसो की जो होंगी आंसू से बेहतर,
रात का जलता दिया, जुल्फों से कहती है,
अब प्यार के दो चार कदम पर,
हम होंगे तुम होगी लेकिन पास तो कुछ भी न होगा....
तुम मुझे बिन हर्फो की कैसे पढ़ती हो,
जैसे बिना नींद का कोई सोता हो,
जैसे होठ तो बांध जाते पर आवाज़ टूटी हो.
इसे कसक कहूं तो अदा क्या कहूँगा,
नजरो में उड़ने दो अक्स हूबहू मेरी,
दूर से ही तो थोड़ी गुफ्तगू होगी.
कभी कभी मिलती थी जो गिरकर,
अब चोट ज़ख़्म से कहती है,
उनके हाथों की मरहम पर,
आह तो होगी लेकिन अहसास न होगा.
देवेश झा
No comments:
Post a Comment