Youthon

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Tuesday, November 30, 2010

muskurahat ki aahat

आहिस्ता हँस दे तू ज़रा,
मुस्कराहट की आहट लत बना दे,
दूर से ही जुल्फें तू उड़ा,
धड़कन की कम्पन मुझे बना ले.
आस पास की सर्द हवा,
ठहर तू इधर उसकी लट बना दे..
कानों में उसके जाकर तू कहना,
उसे है तेरे संग रहना..
अब तो ज़ुल्फ़ की लट संवारेगी,
अपने लाल चादर में आ,
मुझे धुंध में पुकारेगी...
ऊँगली अपनी मेरे लबों पे रखेगी,
फिर जाने से पहले रो देगी,
कुछ तो बहाना होगा,
लाल चादर को जलाना होगा,
जब ठण्ड से कांपेगी,
तभी  तो मेरे सीने से चिपक खुदको धाँपेगी,
कसकर उसके बाजुओं में,
मैं भी आना चाहूँगा,
लेकिन मेरा तो शरीर नहीं,
बस बन हवा उसके बाजुओं से गुज़र जाऊँगा..
देवेश झा

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