Youthon
Saturday, December 25, 2010
FOGGY BLOTS ON THE WONDER MOONBEAM- DEVESH JHA
रक्त है कुछ थका थका सा, the heart broker poem for the country cowards,,, devesh jha
Thursday, December 23, 2010
Blood Bath- Devesh Jha
Sunday, December 12, 2010
A Poem By Devesh Jha
A good morning cup of smile in the midnight......
A fragnance of you, in the dancing dew...
As your image looks in my hue,
Feel the wind of love's que,
Touch my lips as flame touch to light,
A Good Morning cup of smile in the midnight.
Hotchpotch of my heatrbeats,
Always snuggle for your kiss,
Then whisperse I miss, I miss,
O! Miss Kiss of Angel, is on my lips..
Rider of fate, don't wait for flight,
A good morning cup of smile in the midnight..
Keep your eye into my close,
Then listen to the air of my nose,
O! Mild anther of a rose,
Don't annoy for my beloved...
She is best blossoms of nature's almight,
A good morning cup of smile in the midnight..
In the wave of sea, see, meech,
When slowly sit she, me, bessech..
The divine of glee, lee, witch..
The magic we hug to other each...
Our love pride more than mountain height..
A good morning cup of smile in the midnight...
Dance your eyelid with my liplocks,
Do fast we have to walk more than clocks,
My Angel, I am ready to life's each socks,
Hold me tighly, I can face adversity of lots...
Without you I am the rainbow as black and white,
A good morning cup of smile in the midnight...
Welcome in my imagination, take my happiness,
Its the God bless, you are my Zest, You are my busy and rest,
Angel kiss the word "Devesh",
Or cut it keep on your name and pest..
As my breaths, always cross from your grace,...
You are in my eye, only you yonder in all sight,
A good morning cup of smile in the midnight.
Devesh Jha
Wednesday, December 8, 2010
love verse..
सुबह को छूती पहली किरण हो तुम,
हँसते लबो में छुपी गम हो तुम,
ख्वाहिशों को समेट नज़रों में ,
मंजिल कि ओर बढती कदम हो तुम.
ये फूलों कि राहें काँटों में खो गए.
तस्वीर तुम्हारी इन्ही वादियों में छोड़ गए.
अब आँचल को मुखरे पर टिका दो,
मेरे जीवन के पायल कि छन - छन हो तुम,,,,,,
देवेश झा
Tuesday, December 7, 2010
बचपन जब प्यार हुआ था....
मत जलाओ आँखों की जुगनू को रात भर कि,
आँसू बनके भाप सांसों में घुल जायेगा.
गिर पड़े हैं तेरे क़दमों के निशाँ पर,
के लहू हमारी तेरे धूल से धुल जायेगा..
हम किताबों के पन्ने में कुछ लिखा करते थे,
फिर रात भर तकिये तले उसे दबा रखते थे..
अब ना लिखों कुछ अपने होठों पर,
कि दब के कलम तेरे होठों से मचल जायेगा,
जाने क्या हम छुप छुपे के देखा करते थे..
तब कि नादानी में भला क्या अकल आएगा,
अट्ठन्नी को निचे गिरा तेरे जुल्फों पे झुका करते थे.
अब शायद ही तुम चूरन कि पुडिया लाती होगी,
फिर दोस्तों से छुपा मेरे किताबों में छुपाती होगी..
अब तो आधी छुट्टी का इंतज़ार ना होता होगा,
कि जब हम अपने बस्तें खिड़की से फेंक भागा करते थे,
जहाँ तेरी चूरन के बदले हम चुम्बन दिया करते थे..
देवेश झा
Sunday, December 5, 2010
Drowsy Yawn...
उन्ही को खबर नहीं,
उनके आँसू से ही अपनी आँख धोयी है..
सारी रात सिरहाने में था,
सपना बनके सोया मैं,
उन्हें इस की खबर नहीं,
वो तो चला आया मैं आधी रात में,
जानने बाद की वो किसी और के लिए रोई हैं.
चाहत थी मेरी,
किसी और की वफ़ा बन गए,
बीमारी थी मेरी,
किसी और की दवा बन गए.
सजदा थी मेरी,
किसी और की दुआ बन गए.
मेरी ही छुपी जुर्म,
मुझी को सजा बन गए,
चल हुआ ये गीत पुराना सा,
हमने तो कुछ पागलपन की है,
पहले तो सपने में जाता था,
आज कल हमने खुदको उनके ही घर में बंद की है.
हाँ मैं लटकता तस्वीर हूँ,
जिसे हर साल वो फूल चढ़ाती है,
फिर अपने प्यार की मौत
के आँसू सभी को दिखाती हैं,
पागल लोग तो चले जाते हैं,
मैं तो दिवार पर ही लटकता हूँ,
फिर से मरने का जी करता,
जब अपने कातिल संग तुझे,
इसी घर में लेटे देखता हूँ..
देवेश झा
Tuesday, November 30, 2010
muskurahat ki aahat
मुस्कराहट की आहट लत बना दे,
दूर से ही जुल्फें तू उड़ा,
धड़कन की कम्पन मुझे बना ले.
आस पास की सर्द हवा,
ठहर तू इधर उसकी लट बना दे..
कानों में उसके जाकर तू कहना,
उसे है तेरे संग रहना..
अब तो ज़ुल्फ़ की लट संवारेगी,
अपने लाल चादर में आ,
मुझे धुंध में पुकारेगी...
ऊँगली अपनी मेरे लबों पे रखेगी,
फिर जाने से पहले रो देगी,
कुछ तो बहाना होगा,
लाल चादर को जलाना होगा,
जब ठण्ड से कांपेगी,
तभी तो मेरे सीने से चिपक खुदको धाँपेगी,
कसकर उसके बाजुओं में,
मैं भी आना चाहूँगा,
लेकिन मेरा तो शरीर नहीं,
बस बन हवा उसके बाजुओं से गुज़र जाऊँगा..
देवेश झा
Monday, November 29, 2010
जहाँ मुझे मेरी मरी प्रेमिका मिली,
मैंने पूछा गयी थी क्या करने कार के नीचे,
जो तुझे बेदर्दी से किसी ने कुचली..
वो रूठ कर भागने लगी, मैंने कलाई पकड़ा,
तब उसने सच्चाई बताई थोडा थोडा..
उसने कहा, एक दिन मैं कही थी
तुझे बुलाने पर पर "आई देवेश",
यमराज घूम रहा था बदलकर भेष,
उसने आज इंग्लिश समझा,
"आई देवेश" का मतलब "मैं देवेश" समझा..
उसने तेरी मौत के बदले मेरी जान ले बैठा,
अपनी गलती पर वो पछताया,
मेरी जान लौटा, तेरी जान लेने की बात बताया..
मैंने झूठ बोला मैं देवेश ही हूँ,
कम से कम तेरे मौत को तो मैं जी रही हूँ..
हाँ ये बात किसीको मत बताना,
क्यूँकि तेरे आँखों में रहता है मेरा आना जाना.
देवेश झा
Gangajal jaisi...
लबों की शादी...
मेरे आँखों में अपने आँसू गिरा दे,
बारिश की बूंदे जैसे गंगाजल छूती.
थकी पलकें मेरे पलकों पे लिटा दे,
उजली चाँद जैसे नीली आसमां में सोती..
ज़रा ज़रा मुस्कुरा की गगन हाथों में आ जाए,
बाँध मुट्ठी फिर सितारों से तेरी मांग भरा जाए..
घर का ठिकाना मैं ओस से पूछ तो लूं,
उसने कहा तूने नहीं आज गुल चूमा है..
ठहरा ले उसे होठों पर, के मुझे उससे डर है,
बन जाए ना ओस आँसू जो गिरता इधर उधर है..
काश के मैं तेरा होठ बन जाऊं,
फिर फूलों से ओस चुन लाऊं,
कभी तो तुम अपने लब को लबों से मिलाओगी,
अपने ऊपर के लब को पिया बना,
खुद भी नीचे की लब बन जाओगी..
दबी साँसों की बारात होगी,
एक लब दूल्हा मैं एक लब दुल्हन तू,
दो लबों के लिए तो हर शब्द मिलन की रात होगी..
अब दो लबों में बिना कुछ कहे भी बहुत बात होगी..
देवेश झा
Sunday, November 28, 2010
सुबकता आसमां प्यासी धरती थी,
एक चाँद मुझपे भी मरती थी..
यूँही रात गुज़र जाती,
पर जाने से वो डरती थी?
मैंने पूछा क्या हुआ?
पता चला, वो किसी और का इंतज़ार करती थी..
हाथों फूल लिए बैठी रहती थी,
चुप चुप कभी कभी रोती थी...
उस दिन फलक से बारिश होती थी,
मैंने बूंदों को छुआ,
पता चला, मेरी ही आँसू उसके आँखों से गिरती थी..
हवाओं ने रुख बदली,
फिजाओं ने रुत बदली..
पर वो तो वैसे ही बैठी थी..
मैंने जाके देखा,
पिछले ही सावन, वो इंतज़ार करते करते मर चुकी थी...
लाश पे उसकी एक चुनरी थी,
दुनिया उसे सतरंगी कहती थी..
कोई जाकर ना हटाये उस चुनरी को,
वो तो कफ़न बनी मेघ है,
क्यूँकि सात रंग मिल ही तो सफ़ेद है!!!!
देवेश झा
Galat
पर गलती मेरी कहाँ ?
शर्म से सर ना झुकाऊं,
पर मैं बेशर्म कहाँ ?
हर दिन एक डोर काटूँ,
पर इसका अंत कहाँ ?
पैसे लेती तुझे खुश कर,
पर मैं खुश होती कहाँ ?
सजा भी भुगत लूं,
पर मेरी अपराध कहाँ ?
पूजा तेरी कुछ पल करूँ,
पर तू मेरा भगवान् कहाँ ?
रो भी ना सकूँ,
इन आँखों में आँसू कहाँ ?
पेट का सवाल है बाबू,
नोच निर्वस्त्र खड़ी मैं, जहाँ तहाँ..?
देवेश झा
Mere Kuchh Lafzz!!!
मेरे कुछ लफ्ज़ फंसे है तेरे होठों में,
चुपके से इन्हें मेरे लबों पर रख दो...
आंसू बन जाये ना बर्फ पलकों में,
चुप रे पागल हवा क्यूँ सर्दी करता है,
तुम कुछ बोलकर ज़रा चुप हो जाओ..
ये और रात का भींगा ओस बस मनमर्जी करता है,
छूकर इन्हें तुम मुझसे लिपट फिर छुप जाओ..
बुझता हुआ चाँद क्या शर्माएगा,
ढीठ बड़ा रात अपने संग बिताएगा..
तुम हंसकर इसे इशारा कर दो,
कमबख्त! धरती पर गिर जायेगा..
देवेश झा
Saturday, November 27, 2010
तपने दो आंसू मेरी,
तुम अपने आँखों की धूप में.
साँसों को जरा छूकर देखो,
ठंडे होठों के लुक-छुप में.
पलकों के किनारें जो काजल,
सुन सुन क्या कहती है,
बिना छनकती तेरी पायल,
ओह! कहने से डरती है..
चल छोड़ जुल्फों का कहना,
बिन हवा के उड़ उड़ कहती कुछ ना...
फिर थम के मेरा नाम तू लेना,
अब प्यार नहीं मुझसे ज़रा कहो,
मिट जाएगी लकीर तेरी, ऐसा मत करना..
देवेश झा
Friday, November 26, 2010
Any Aurora Od November (Mumbai Terror)
Note:-(This post is taken from my fiction Dwelling Dew, no any part is real.. its only and only imaginory)
From the My new Novel Dwelling Dew (Story of Scatty)
Wednesday, November 24, 2010
Willy-Nilly of Black Night
As every night I wake up today also. Immersed night was not slumbering or being a shelter of somnambulist, this was carrying out a rivulet of dew; free from anxiety, seemed to be as serenade was cherishing to pretty champion nymph, surety of sky was denoting ceased of his before the daybreak, cloud were making abode of moon, feeble twinkling of stars was coming strongly, unhampered as without any alternative. Wind cold; refreshing sensation was causing a chill in entire soft and small hair on the body, lots of messenger of angel walking here there and everywhere in the costume of fire-fly. There was continuing of blessing kissing missing and embarrassing of blue sky and dark earth, overwhelmed starry night spurted innate disposition. Mime between earth and sky was memorable, in this modulation of a humming occurred during comet absolve in mists. If a sight fallen inside of horizons then it was given a gift of glance as someone was locking his lover into his arm and ringlets were waving due to lovely lisping of her attitude, exactly according to this manner chuckling cloud was touching the earth at horizon.
From the my new novel Dwelling Dew (Story Of Scatty)
Devesh Jha
Thursday, November 18, 2010
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा,
जैसे ट्रैफिक का टूटा रूल,
जैसे पिक्चर हो पैसा वसूल.
जैसे मैक्डोनाल का पिज्जा,
जैसे गजनी का गज्ज़ा,
जैसे फेसबुक का प्रोफाइल,
जैसे मोटोरोला का मोबाइल.
हो! जैसे कॉलेज में सहेली,
जैसे दिवाली में हो होली...
जैसे सू सू करता नवजात,
जैसे घर से भगाता बाप..
एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा...
जैसे बाइक में ख़त्म हो पेट्रोल,
जैसे सचिन हो जीरो पे बोल्ड..
जैसे मुंबई का ब्लास्ट,
जैसे बोर होता क्लास..
जैसे एकोन लिपस्टिक लगाये,
जैसे जोर्ज बुश गाना गाये...
हो जैसे बंद हुआ हो लिफ्ट..
जैसे सस्ता मिला हो गिफ्ट.
हो जैसे न चलता हो फटा नोट ..
Monday, November 15, 2010
Touch Imagination
अपने बेचैनियों की सुबह तलाशता हूँ,
कभी कभी इसकी वज़ह तलाशता हूँ.
आंसू हटाकर अपने मन से,
धड़कन में छुपी कम्पन तलाशता हूँ.
गाने को तो कोई धुन न मिलता,
होठों से यूँ ही चिपके हर्फ़ फेंका,
लोगों ने कहा ग़ज़ल बन गए.
मैं अभी धुंध में खोया ही था,
उन्होंने आके लिपटा दी बाँहें अपनी,
हर अश्क ओस के जल बन गए..
नाकामयाब इश्क की फतह तलाशता हूँ,
जन्हा हो हम वो एक साथ वो जगह तलाशता हूँ.
अपने यादों के हर कफ़न से,
मौत जो ना मिलती मुझे बेवज़ह तलाशता हूँ...
झूठी जिंदगानी की हर बिसात मैंने ही बिछायी थी,
सूखे बादलों में पहली बरसात मैंने ही लायी थी.
चलकर हम करीब जा सकते थे,
पर पैरों में जंजीर एक रात मैंने ही बनायीं थी...
देवेश झा
Friday, November 12, 2010
The little bit touch....
तुम मुझे यूँ सपनो में क्यूँ दिखती हो,
जब भी रात ठहर कर रोता है,
तुम मेरे पलकों को क्यूँ छूती हो?
सजा कहूँगा तो वफ़ा क्या करूँगा,
बहने दो होठों से लहू मेरी,
एक नमकीन सी खुश्बू तो होगी,
सांसो की जो होंगी आंसू से बेहतर,
रात का जलता दिया, जुल्फों से कहती है,
अब प्यार के दो चार कदम पर,
हम होंगे तुम होगी लेकिन पास तो कुछ भी न होगा....
तुम मुझे बिन हर्फो की कैसे पढ़ती हो,
जैसे बिना नींद का कोई सोता हो,
जैसे होठ तो बांध जाते पर आवाज़ टूटी हो.
इसे कसक कहूं तो अदा क्या कहूँगा,
नजरो में उड़ने दो अक्स हूबहू मेरी,
दूर से ही तो थोड़ी गुफ्तगू होगी.
कभी कभी मिलती थी जो गिरकर,
अब चोट ज़ख़्म से कहती है,
उनके हाथों की मरहम पर,
आह तो होगी लेकिन अहसास न होगा.
देवेश झा
Tuesday, September 14, 2010
Suno to jara..
Kisi aur shaam apne labon ko chhuna, ab subah ki ek jhuthi mulakat de do.
Yun tum julfon ko pani me bhingne na do, ki sard sa hawa mujhse guzar jati.
Wo halki si kajal ko anchal se milne na do, raat ka atka ansoo abhi bhi nazar aati.
Chhupkar kyun meri tasweer dekhti ho, ki kangan tumhari mere rango pe ragar jati.
Chhill jati bhale tasweer meri, ab har ghari ispe kangan wali hath dedo.
Main na jaunga ghar lautkar shayad, tum apne thikano se nikal sath dedo,
Bahut hua andhere me rona, ab mujhe jeene ki raat dedo.
Devesh Jha
Saturday, September 11, 2010
However she loves me.........
A touch for you…
Was that only you, who kept hiding herself from my dreams, sometimes, used to lighten entire sky as a moon and sometimes would appear as an emerging flower and put me on fire with the firing touch of dew.
Are you the same treasure which has always been healing me in dreams either in my sleeping sense or ever when I am awaken, and with the touch of that I would get unconsciousness in my cosiousness….!
Would always try to find you in sky holding the neck up… eyes stucked in clouds….
Sky used to play the act of a curtain and you would appear to me…. Dancing on the curtain, I wanted to come close but you walk away and disappear at the same time. The distance would rise to a high rate. And I used to start running … following you avoiding the fact that you are only in the imagination and I am at the earth.
But still you would create a stair for me with straight line from the moon. I used to find you in the lands of sugarcanes but you would come just in my dreams and suddenly put you warm palm on my eyes… I would cry… you are really back to me …. Yes indeed you are back…!
But just in a moment you would disappear again, the unclear shadow in the clouds got black cover and it started pouring. Each drop of rain was giving me the feel of your touch and with that I was jus last…. The drop of rain would taste
Wednesday, September 8, 2010
Ohhhh! doomsday... today
Afternoon was about to be finished, for inviting to the evening, this were requesting to sun to dim himself and hid in the orange horizon shivering in the west. One typical but small village, Talipur, spreader soil on the boundary type way, looked as host road. Greenery field, blue sky, red temple of God and his unfurl flag tagged on longitudinal and huge bamboos, amazing painting of various God, bride and bridegroom and many animals with dense affection on the wall of straw hut, this is made by lime, dung and another natural colour, this is world famous Madhubani painting people called Kohbar. Twittering sound of bird, ponds for fish specially rohu, makhana, dried seed of water lily, somewhere stage of betel and vegetables, this because whenever you would be listen about Mithila, you have to got know about betel, makhana and fish. Mithila is a part of Bihar, inside of Nepal; this is regarded as home of Goddess Sita, and actually more than half part of Mithila is in the Bihar and remaining part in the Nepal as Janakpur. Now again enter into Talipur, divine creature of nature, as any Bollywood movie Talipur has also a canal and melodious murmuring music from the river Kamla, all of these reveal the artistic skill of universal almighty power.
Whenever presumption jumped over the rule story of each life changed in another way. By the way, there are lots of character exist in tis village for giving of infatuated of their own heroic tale but I chosen only four. Crazy – carefree, innocent – lovely and idle – naughty boys, which all blossoming out by the gust blast of invisible but always moving age. Four of these have a better understanding manner for each other; though they belonged from different caste and class, let’s go to meet them.
Black Night
Black night was giving a new birth to the shadow of rays coming from moon, travelling through tired nebula.
As always, I was alone in the midnight. Sitting on my ironic chair, I was searching my mother holding my neck towards sky.
I didn’t want to sleep but eyes would get tired.
Not having someone before you who is very close to you may be fatal. I had chosen this time only for me, because Dad and this world used to be in the deepest form of their sleep, completely cooled silent.
Ssssshhh!!!!!...it’s something in cool and calm midnight,
Shivering wind….. Falling Dew drops by drop…..
Noise of crickets....Throbbing of bats…..
Fragrance of night flower….Melodious music tone coming from somewhere….Touching clinking of imaginary anklet….
Rhythm of ghunghroo…
Perhaps this all was imaginary, but I was living this moment indeed.
Leaflet of myrobalan falling upon my arm,
Engrossment of white roses into colourless moon,
Growing stalk of bottle-gourd which is laid on platform of dry bamboos, don’t know why these were asking something to lunatic and restless air. I too asked where my mom is.
Quenching holy lamp in temple far away,
Emerging of black cloud which had now fallen at least horizon,
Bricks of debris which had fallen down and mired into soil,
&
Weeping of pup beside the corpse of bitch who was his mother had got into a road accident; two wheel of a new car had suppressed her, was licking his never returning Mom with muzzle.
The orphan pup was returning in the fear of other animals.
Now, hundred of jackals will gnaw his mother.
In the middle of mine thinking he smelled my foot when he was crossing from me.
This all was answering to me, the thing which has been ended, is not to be given even a sight to it, and if it is given then that is equal to the end of life.
I dazzled and startled following my habit, wept just for 2-3 drops, said bye to Mom pointing in sky. Come to bed and started struggling to sleep. I need the touch of my mother perhaps, I wanted to sleep, but suddenly get up and sit on my study table, took admit card from drawer.
Then started to searching I in that beautiful picture which is stuck by mistake at the Admit card of board exam , got lost into that and don’t know when got dream sequence.
The shimmering picture got pressed of retina of love hunger eye at an instant, when I didn’t know it.
Devesh Jha
Red Shawl
Can you remind those moments?
When in white covered fog in unclean shadow you come to me,
Completely covered with red shawl..!
Drops of dew were stacked ay the head of grasses...
And you pushed some words into my ear putting your annoyed palm on my lippsss...
I was lost somewhere in the touch of your ringlet,
Just below your nose and slightly about your upper lip, a steam flow was coming out and gut coiled with my hair.
Spark of love was dazzling in our hearts.
You were kept listening the beats and acts of my heart in the mean while sky started putting tears in the form of dew….!
You got shied seemed like all the silky plights will be erased from your eyes but blackish blue colour of your pupil got darker with the restless moment of wind.
You didn’t feel it fair to let the wind pass between is, so, you hold me more tightly and hidden yourself into my chest.
The warmth of your touch changed the damp weather into heating one.
Suddenly you smiled…